Saturday, November 8, 2014

ज़िन्दगी एक लंबा दुःस्वप्न 


दुःस्वप्न ये ज़िन्दगी
जिसमें भागता फिर रहा हर एक सख्श
नींद नदारद होती नम नयनो से

राजू को रीता से प्यार है
पर रीता तो रीझती है राधे से
राधे को रीता में रस नहीं

हर एक चीज़ चीज़ है
अगर बिक सकती है
बिकने की होड़ है

Tuesday, November 4, 2014

खारिश

ज़िन्दगी  अक्सर जगाती है यूं ही,
या कमबख्त नींद नहीं आती है यूं ही...

किसी की याद आती है यूं ही,
या ज़ख्मों में खारिश है यूं ही... 

Wednesday, December 29, 2010

बीत गया साल

बीत गया साल,
दे गया हमको कुछ पल अविस्मर्णीय,
और कुछ अधूरे ख्वाब

हमने कुछ सीखा,
कुछ पीछे छोड़ दिया
कुछ छूट गया और कुछ जोड़ लिया

जब तुमने भी विदा लिया,
अश्रुपूरित नयनो से,
थके मन और थके कदमो में
हम स्थिर थे या फिर से भटके से,

मन में वेदना और भावनाओ का बवंडर था,
खतरनाक मंजर था
........................


हम दृष्टा भी थे, भुक्ता भी

बीत गया साल,
आशाएं हैं नव वर्ष कुछ नयी चुनौतियाँ लेकर आये,
कोई और न बिछड़ जाये ....

ईश्वर सबको सन्मति दे,
सन्मार्ग दे,
स्वस्थ रखे,

नव वर्ष मंगलमय,
सुधीर

Wednesday, November 3, 2010

कश्मकश

आप कैसे होंगे !

मेरा क़त्ल करके खाक़  में मिलाने के बाद !

क्या आप आज भी खुल कर  हँसते होंगे ?
 झूठा दर्द किसको बयां करते होंगे ?
फिरसे किसी और की बलि चढ़ाते होंगे ?

दर्द मेरा, दर्द तेरा
मंज़र दर्द का, समंदर दर्द का
रिश्ते दर्द के, किरदार  दर्द के
दुनिया दर्द की, आलम दर्द का
इस दर्द में कैसे जीते होंगे आप !

तुमपे मरने में जूनून था मुझे,
तुमसे मरना मेरा नसीब था !
शिकायतों का वक्त जाता रहा
मलालों का दौर ज़ारी है अभी

एक कश्मकश मामूली सिफर सी
खुश तो होंगे न आप ?

कैसे होंगे आप ?
मुझे ज़मींदोज़ करने के बाद!

क्षमा,
सुधीर


Wednesday, August 4, 2010

ये तेरा जिक्र है

ये तेरा जो जिक्र है...

जिक्र है जो जुबां से जुदा नहीं,
हर लम्हा कि जैसे तेरी अमानत है।
आरजू थी कुछ...
गुज़ारिश शायद ...
कुछ अपूर्ण ख्वाहिश ...
कुछ ख्वाब शायद ...
ज़िन्दगी में कुछ महक है तेरे कहीं होने की ....
ये तेरा जिक्र है
जो मेरे जीने की वजह है शायद ...
क्षमा,
सुधीर

Friday, February 19, 2010

भविष्यवक्ता और वशीकरण

एक अज़ीज़ के कहने पर,
मैं एक भविष्य वक्ता से मिला....

वो बोली क्या तकलीफ है?
मैंने कहा कोई तकलीफ नहीं, बस इसी बात की तकलीफ है।
एक मित्र के कुछ सवाल हैं बस वही पूछने आया हूँ, उसने जिद की है
वो बोली उस मित्र की समस्याओं का समाधान १ महीने में हो सकता है ...
उसे कठिन मेंहनत करनी होगी....


वो बोली तुम किसी मानसिक वेदना का शिकार लगते हो,
मेरे एक साप्ताहिक कार्यक्रम में पंजीकरण करवा लो....

जून के महीने में कुछ ऐसा होगा ... अक्तूबर में कुछ वैसा....
तुम्हें २ व्यक्तियों से सावधान रहना होगा
कोई फूल का गुलदस्ता दे तो सावधान रहना
उसमें कोई वशीकरण की पूर्ण संभावना है ...

मैंने कहा मुझे वशीकरण की ही तो ज़रुरत है॥
मुझ पर किसी का वशीकरण नहीं ...
मुझे तो इस लोक से वियोग है ...
.....
क्षमा,
सुधीर


Monday, January 11, 2010

उदासी

आज फिर एक उदासी मिली
काली स्याह रात के बाद तन्हाई मिली

यूं तो मैं जीना बहुत पीछे छोड़ आया था
मगर रह गुजर में फिर रुसवाई मिली

दर्द जाना पहचाना था
जर्जर रूह को फिर से एक आह मिली

काम करने का अब हौसला उतना नहीं
हर तरफ मातमी उदासी मिली